Jhansi Ki Rani : झाँसी की रानी | Story of The Jhansi’s Queen

झाँसी की रानी

Jhansi ki Rani Laxmibai | झाँसी की रानी की भूमिका

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (Jhansi Ki Rani Laxmibai) भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक बहादुर योद्धा थीं। और अपनी आखिरी सांस तक वे झाँसी के लिए अंग्रेज़ों से लड़ते रही। उनकी वीरता के किस्से आज भी प्रचलित हैं, उनकी मृत्यु के बाद भी झाँसी की रानी अंग्रेजों के हाथ नहीं आई। रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया था। उनका एक शब्द बहुत लोकप्रिय है! मैं अपनी झाँसी कभी नहीं दूँगी’, उनके ये शब्द बचपन से लेकर अब तक हमारे साथ हैं। आइये जानते हैं झाँसी रानी की कहानी के बारे में विस्तार से।

Who is Jhansi ki Rani Laxmibai | झाँसी की रानी कोन थी

मणिकर्णिका ताम्बे ( मनु )
जन्म- 19 नवंबर 1828, वाराणसी, भारत
मृत्यु- 17-18 जून 1858 (उम्र 29 वर्ष)
कोटा की सराय, ग्वालियर, भारत
जीवनसाथी- झाँसी महाराज गंगाधर राव नेवालकर
बच्चे – दामोदर राव, आनंद राव (दत्तक)
घराना – नेवालकर
पिता – मोरोपंत ताम्बे
माता – भागीरथी सापरे

Jhansi Fort Photo | झाँसी के किले की कुछ तसबीरे

उत्तर प्रदेश के झाँसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर स्थित, इसका निर्माण 1613 में ओरछा के बुंदेल राजा बीरसिंह जूदेव ने करवाया था। बुंदेलों ने यहां 25 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद इस किले पर मुगलों, मराठों और अंग्रेजों का अधिकार हो गया। वर्ष 1729 में मराठा शासक नारुशंकर ने इस किले की संरचना में कई बदलाव किये, जिसके कारण यह क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1857 के ‘स्वतंत्रता संग्राम’ में ‘झांसी किले’ को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था। पूर्ब फोटो

झाँसी की रानी का प्रस्तावना: Preface

About Jhansi Rani his Husband name Gangadhar Rao and How to death Jhansi ki Rani’s Husband.


19वीं सदी में जब महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु हुई तो भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था और कई अनेक राज्यों को उनकी शासन सियासत में शामिल किया जा रहा था ब्रिटिश लोगों ने महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में झाँसी की रानी को स्वीकार नहीं किया। उस समय गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी बहुत चालाक व्यक्ति था, जिसकी नज़र झाँसी पर थी। वह झाँसी पर कब्ज़ा करना चाहता था क्योंकि उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। लेकिन झाँसी की रानी इसके ख़िलाफ़ थी, वह किला किसी भी हालत में नहीं देना चाहती थी।
रानी को बाहर निकालने के लिए उन्हें 60000 सालाना पेंशन भी दी जाएगी ब्रिटिश सरकार ने ऐलान किया था. लेकिन झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई किसी भी कीमत पर झाँसी को ब्रिटिश सरकार के अधीन नही होने देना चाहती थी। उन्होने झाँसी की रक्षा के लिए एक मजबूत सेना इकट्ठी की। इस सेना के अंदर महिलाएँ भी शामिल थीं, कुल 14000 विद्रोहियों ने एकत्रित करके सेना का गठन किया। । इस समय की भारतीय समाज में गुलामी और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठ रही थी। इस आंदोलन में नारी वर्ग भी सक्रिय भूमिका निभा रहा था।
https://youtu.be/-Uapv1yRVFs

झाँसी की रानी का साहसी बचपन:

Childhood of Jhansi ki Rani Laxmibai.


लक्ष्मीबाई, जिन्हें बाद में “झाँसी की रानी” के नाम से पुकारा गया, 19 नवम्बर 1828 को काशी में जन्मी थी। उनका नाम मणिकर्णिका ताम्बे था, जो बाद में बाल्यकाल में मना कर “मनु” के रूप में जानी गई थी। उनके पिता का नाम मोरोपंत था, जो एक ब्राह्मण वर्ग के माध्यम से जीवन यापन करते थे।.

मनु मे बचपन से ही साहस और न्यायप्रियता की भावना दिखाई देती थी। वे उम्र की साथियों के साथ खेलती और पढ़ाई करती थीं, जो उनकी शिक्षा के प्रति उत्साहित करता था।

झाँसी की रानी” लक्ष्मीबाई की कहानी बचपन से ही साहस और उत्साह की प्रेरणा से भरपूर थी। उनकी बचपन से ही दृढ इच्छाशक्ति और स्वतंत्रता के प्रति आकर्षण था, जो उन्हें एक निरंतर लड़ने और संघर्ष करने की दिशा में ले गया

लक्ष्मीबाई का बचपन बहुत ही सामान्य और संवादपूर्ण था, लेकिन उनकी माता-पिता ने उन्हें देशभक्ति और स्वतंत्रता के महत्व की शिक्षा दी। उनके पिता ने उन्हें साहसपूर्ण किस्म की शिक्षा दी, उनको तलबार बाजी ओर घुड़सवारी का बहुत सौक था जिस से उन्हें सख्ताई से और मनोबलपूर्ण ढंग से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में आग्रहित किया।

झाँसी की रानी ने बचपन से ही खुद को स्वतंत्रता संग्राम के लिए तैयार किया था। उनकी उम्र बढ़ने के साथ, उनके मन में एक उद्दीपक स्वतंत्रता की आग जलती रही, जिसने उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खड़ा होने की प्रेरणा दी।

झाँसी की रानी ने बचपन से ही साहसपूर्ण और आत्मनिर्भर व्यक्तित्व का विकास किया था। उनकी बाल्यकालीन सीखें आज भी हमें यह सिखाती हैं कि सही दिशा में निरंतरता और आत्मविश्वास से व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।

झाँसी की रानी की शादी और समर्पण :

Who ki Rani Ki Shadi and his Sacrifices


वर्ष 1842 में, मनु की शादी गांधरवराजा लक्ष्मीबाई, झाँसी के महाराज गंगाधर राव से हुई। उनकी शादी के बाद, मनु का नाम लक्ष्मीबाई में परिवर्तित हो गया।

लक्ष्मीबाई ने अपने पति के साथ अपने राज्य का प्रबंधन करते समय एक समर्पित और सशक्त महिला का परिचय दिया। उन्होंने राज्य की विकास और जनकल्याण में अपना समर्पण दिखाया और न्याय के प्रति अपनी पूरी समर्पणा बनाए रखी।

1857 का विद्रोह और झाँसी की रानी:
1857 में, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई, जिसे “सिपाही मुतिनी” या “भारतीय विद्रोह” के नाम से भी जाना जाता है। यह संग्राम ब्रिटिश साम्राज्य
के खिलाफ था

झाँसी की रानी का युद्ध और वीरता का परिचय:

How to Death Jhansi Rani Laxmibai she was a breve Freedom Fighter in India


झाँसी के महाराज गंगाधर राव की मृत्यु के बाद, ब्रिटिश सरकार ने झाँसी के साम्राज्य का समर्पण नहीं किया और झाँसी की संपत्ति को ब्रिटिश शासकों ने जब्त कर लिया। लक्ष्मीबाई ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निर्णय लिया।

वीरगति के लिए अपने प्रिय पशु राजा सरीका की बलि देने के बाद, लक्ष्मीबाई ने स्वतंत्रता संग्राम की ओर कदम बढ़ाया। उन्होंने अपनी सेना को संगठित किया और झाँसी की रक्षा के लिए युद्ध की तैयारी की।

1858 में, झाँसी की रानी ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ युद्ध का आदान-प्रदान किया। उनकी साहसपूर्ण सेना ने ब्रिटिशों के खिलाफ युद्ध किया और उन्होंने कई अद्भुत युद्ध प्रतियोगिताएँ जीती। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत के रूप में मानी जाती है।

1857 के भारतीय प्रजातंत्र और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक विशाल विद्रोह उठा था, जिसे “सिपाही आंदोलन” या “भारतीय स्वतंत्रता संग्राम” के रूप में भी जाना जाता है। इस विद्रोह का उद्घाटन मीरथ में हुआ था और धीरे-धीरे यह विद्रोह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया।

“झाँसी की रानी” जिन्होंने अपनी वीरता और साहस से यह विद्रोह पूरे भारत मे ब्रिटिश सासन से आजादी के लिए छेड़ा था। उन्होंने अपने पति के मृत्यु के बाद झाँसी की रानी बनकर अपने प्रजातंत्र की रक्षा की। वे सिपाहियों का साथ देकर अपने किले की रक्षा की और ब्रिटिश सेना के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी।

लक्ष्मीबाई की वीरता और संघर्ष की कहानी आज भी हमें प्रेरित करती है। उनका यह प्रयास और बलिदान हमें याद दिलाते हैं कि स्वतंत्रता के लिए लड़ना महत्वपूर्ण है, चाहे समर्थन जितना भी कम हो। “झाँसी की रानी का विद्रोह” भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को प्रकट करता है, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की आवश्यकताओं और अभिवादनों की ओर ध्यान खिंचा।

झाँसी की रानी का बलिदान और शहादत :

https://youtu.be/vcX_0m8RYSc


झाँसी की रानी ने अपने युद्धक्षेत्र में वीरता और उनके सैनिकों की साहसपूर्ण लड़ाई के बावजूद अंत में अपनी बलिदानी शहादत दी। 17 जून 1858 को, उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ एक महत्वपूर्ण युद्ध की थी, जिसमें वे वीरगति प्राप्त कर गई।

झाँसी की रानी की शहादत ने उनके साहस और समर्पण की मिसाल प्रस्तुत की। उन्होंने दिखाया कि एक महिला भी अपने देश के लिए अपने प्राणों की बलि दे सकती है और स्वतंत्रता के लिए लड़ सकती है।

झाँसी की रानी की विरासत:


झाँसी की रानी की शहादत ने उन्हें अमर बना दिया। उनकी कड़ी मेहनत, संकल्प, और समर्पण ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महान यात्रा को प्रेरित किया।

आज भी, झाँसी की रानी को एक महिला वीरांगना के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने शौर्य और समर्पण के साथ अपने देश के लिए लड़ते हुए दिखाया कि नारी शक्ति का प्रतीक हो सकती है।

निष्कर्ष:

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की कहानी भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय योगदान है। उनकी वीरता, साहस, और समर्पण ने दिखाया कि एक महिला भी अपने सपनों को पूरा करने में सक्षम होती है। उनकी कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि समर्पण और उत्साह से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है, चाहे वो कितना भी कठिन क्यों न हो।

झाँसी की रानी ने हमें यह सिख दिलाया कि आत्मबल, उम्मीद और संकल्प के साथ किसी भी परिस्थिति का सामना किया जा सकता है। उनकी आदर्श जीवनी हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है, और हमें उनकी महानता को समर्पित करते समय गर्व महसूस होता है।

https://youtu.be/ML_UlJqSHLQ

Symbol of Courage

Lakshmibai of Jhansi carved a unique place for herself through her valor and courage. Her contribution remains etched as a symbol of bravery and is still recounted as a tale of inspiration.

Conclusion

The saga of Jhansi ki Rani encompasses the extraordinary journey of a woman’s courage and determination. Her legacy is invaluable in Indian history, and we should take pride in the fact that our society has witnessed such powerful women.

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